शुक्रवार दोपहर दुष्कर्म के अभियुक्त का वध करने के वाले दुष्कर्म पीड़िता के पिता भागवत जी ने पुलिस को यह बयान दिया है और कहा है कि "मुझे दिलशाद की हत्या करने का कोई पछतावा नहीं है। घुट-घुटकर जीने से अच्छा है जेल में रहना। फांसी चढ़ जाना।"
भागवत जी ने बतलाया कि समाज के ताने और दिलशाद की हरकतों से परेशान होकर उन्होंने यह कदम उठाया।
पुलिस ने भागवत जी का बयान दर्ज किया है। बयान के मुताबिक, भागवत निषाद ने कहा है कि समाज के ताने सुन-सुनकर वह इतना परेशान हो गये थे कि आत्महत्या करने की सोचने लगे थे। भागवत जी ने आगे बताया कि बीच जमानत पर छूटे दिलशाद की हरकतों ने मेरी परेशानी को गुस्से में बदल दिया। खुदकुशी करने से परिवार का भविष्य खराब होने के डर से इरादा बदल दिया। सोचा क्यों न परेशानी की वजह को ही जड़ से खत्म कर दिया जाए और उसकी इसलिए उन्होंने दिलशाद का वध कर दिया।
भागवत जी ने बताया कि एक समय था कि घर में कोई काम पड़ने पर दिलशाद मदद करता था, लेकिन समय के साथ उसके तौर तरीके बिगड़ते गए। दिलशाद उसके घर के सामने ही पंचर की दुकान लगाता था। उसे समझाया और डांटा भी। इसके बाद वह दुकान बंद कर गोला जाकर काम करने लगा था। लेकिन, उसकी हरकतों में सुधार नहीं आया। एक दिन बेटी कॉलेज से घर आ रही थी, तभी उसे जबरन लेकर हैदराबाद चला गया। पुलिस ने छह दिन बाद केस दर्ज किया था। लड़की को हैदराबाद से बरामद किया। दिलशाद जेल गया। मैं दो साल पहले ही सेना से सेवानिवृत्त हुआ था।
जब भी कहीं जाता था, बेटी के बारे में लोग कानाफूसी करते थे। इस कारण घर से बाहर भी नहीं निकलता था। किसी तरह परिवार वालों ने संभाला। जब तक दिलशाद जेल में था, तब तक तो ठीक था। जेल से बाहर आते ही वह मुझे और बेटी को परेशान करने लगा। कभी घर के बाहर आकर जोर-जोर से चिल्लाता तो कभी कुछ और हरकत करता था। इससे मुझे गुस्सा आता था, लेकिन लड़की की गलती भी लगती थी। इसी बीच खुदकुशी का ख्याल मन में आया, लेकिन फिर सोचा कि मेरे बाद परिवार का क्या होगा ?
दिलशाद सबका जीना मुश्किल कर देगा। इसके बाद कांटे को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया। मैने बेटी के अपमान व प्रताड़ना का बदला ले लिया है। अब बेटी या परिवार को कोई परेशान नहीं करेगा...!!
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